Tuesday, April 28, 2020

अब तो चींटी भी नमक खाने लगे

भूख इस तरह से खूब सताने लगे।
अब तो चीटी भी नमक खाने लगे।1//

कभी दूध घी में डूबा था पापी पेट,
अब तो छाछ पे भी आफत आने लगे।2//

वो घर जो विरासत में मिली मुझको,
सियासत अपना हुनर आजमाने लगे।3//

चिड़िया कब रुका है एक घोंसले में,
उसकी बेबफाई ने भरम फैलाने लगे।4//

 दूरियाँ ठीक नही जब दिल राजी हो,
 वो जिस्म में रूह तक समाने लगे।5//

कर्ज मोहब्बत का चुका न पाऊंगा,सोनू
उसकी यादें चक्रवृद्धि ब्याज लगाने लगे।6//
©सुनील कुमार सोनू
26।04।2020

वो दौर भी आएगा जब नाज करोगे तुम

वो दौर भी आएगा जब नाज़ करोगे तुम।
भीड़ में जोर से जब आवाज करोगे तुम।1//

फ़क़ीरी का मतलब, नही की बेशोहरत हूँ,
घर मे है बेशुमार दौलत,राज करोगे तुम।2//

अपनी शर्तों  पे मुहब्बत कर ऐ आशिक,
तभी इश्क़ में एक नया रिवाज बुनोगे तुम।3//

अँधेरा का काम है ,दबे पाँव चुपके से आना,
दीप जला के सबेरे का,आगाज करोगे तुम।4//

हुस्न को घमंड हो अगर,अपनी खूबसूरती पे,
दो दिनों के बाद भला किसपे गाज गिरोगे तुम।5//

दिल की दस्तक पे आई हो, सुस्वागतम है प्रिये,
 इतना बता दो कबतक मेरा लिहाज करोगे तुम।6//
"©सुनील कुमार सोनू,लखीसराय बिहार
26।04।2020

रे सुथरकी रे बन जो ने धनिया हमार

गीत:
मापनी:24/28
चेल्हा मछरिया नियन, चमको तोरो लिलार।24
अरे  सुथरकी रे,बन जो ने धनियां हमार।24
नथिया बेसर झुमका ,   सभे देबो उपहार,24
अरे  सुथरकी रे,बन जो ने धनियां हमार।24

आँखों में कजरिया शोभे,बालों में गजरिया रे।28
हांथो में महुदिया शोभे,पाँवो में पयलिया रे ।28
 फूलल सरसो  नियन ,देहिया भेलो बहार।24
अरे  सुथरकी रे,बन जो ने धनियां हमार।24

मलदहिया अमवा के रस में,जौन मिली माजा हो।28
स्नेहिया के कोरवा में ,उहे फल मिली ताज़ा हो।28
प्रेम में पागल नियन,अचरा खोजो तहार।24
अरे  सुथरकी रे,बन जो ने धनियां हमार।24
©सुनील कुमार सोनू
20।04।2020
रात्रि:2:40-3:30

ओकर अँखियाँ जे कमल लागेला


ओकर  आँखियाँ जे  कमल लागेला।
हम जे लिखनी उहे  ग़ज़ल लागेला।

भौरा चिपकले रही काल्हु रातें में,
जेहे से तितली जादे चंचल लागेला।

छू के देखनी हम अजु ओकरा के,
नरम मोलायम जैसे मलमल लागेला।

ओकर ओझरल केशिया संवारत रही,
खबर नइखे कब सोम मंगल भागेला।

वोही रे जगहिया पे भटक गईनी हम तो,
उनखर याद बहुते घना जंगल लागेला।

मस्त मीठी हवे मलदहिया आम नियन,
ओकरे प्रीतिया से हमर जिन्गी हलचल लागेला।
©सुनील कुमार सोनू
लखीसराय, बिहार

Monday, April 27, 2020

बिटिया बिना घरवा सुना लागै हो

सुना लागै मीता, सुना लागै हो।
बिटिया बिना घरवा सुना लागै हो।।
सुना लागै दादा, सुना लागै हो।
बहना बिना घरवा,सुना लागै हो।।

अब नही चिहुके अंगना चिडैंईयाँ।
अब नही किहुके सुगना लड़कईंयां।
ओकरे बोलिया सलोना लागै हो।।
बिटिया बिना घरवा सुना लागै हो।।

तनी तनी बात के ,खियाल उ रखेली।
कुल पर्व त्योहार के,संभाल उ करेली।
बटुआ बिना हम त ,बौना लागै हो।।
बिटिया बिना घरवा सुना लागै हो।।

नेहिया दुलार के,खिलौना सब छूटल।
पुरवैया बयार के ,पौना सब रुठल।
ओकरा होला से शादी गौना लागै हो।
बिटिया बिना घरवा सुना लागै हो।।
©सुनील कुमार सोनू
27।04।2020

कोरोना भेलो कसाय गे

अब की करियो माय गे
कोरोना भेलो कसाय गे।
देखे में छौ आयरस भायरस,
सबके देलो डराय गे।

चीनी प्रदेश से उड़ के अईलौ,
देश विदेश में तबाही मचैलौ,
देख के इटली अमेरिका की हालत,
देहिया गैलो थरथराय गे।
अब की करियो माय गे
कोरोना भेलो कसाय गे।
देखे में छौ आयरस भायरस,
सबके देलो डराय गे।

गउंआ समाज मे फैलो बेमारी,
बंद करैलको नइहर ससुरारी,
लोकडॉउन में सब फसल बिया,
डॉक्टर के बुद्धि गैलो ओराय गे।
अब की करियो माय गे
कोरोना भेलो कसाय गे।
देखे में छौ आयरस भायरस,
सबके देलो डराय गे।

मोदी जी के भाषण सुनिहा,
घर मे सब सावधान रहिहा,
सोसल डिस्टनसिंग के विधि से,
कोरोना के  देवै हराय गे।
अब की करियो माय गे
कोरोना भेलो कसाय गे।
देखे में छौ आयरस भायरस,
सबके देलो डराय गे।
©सुनील कुमार सोनू
12।04।2020

पीहू पीहू बोले रे पपीहरा

देहाती झूमर/कजरी/लोकगीत/

सावन के महिनवा रे सखिया।
मनवा मारे रे हिलोर।
पीहू पीहू बोले रे पपीहरा ,
थिरके मनवा के मोर।1//

रिमझिम बरसे पनिया रे सखिया।
पियवा खोजे चितचोर।
पीहू पीहू बोले रे पपीहरा ,
थिरके मनवा के मोर।2//

फरफर उड़े ओढ़निया रे सखिया।
जियरा धड़के जोरजोर।
पीहू पीहू बोले रे पपीहरा ,
थिरके मनवा के मोर।3//

बाबा के पोखरिया रे सखिया।
नहावे गइले भोरेभोर।
पीहू पीहू बोले रे पपीहरा ,
थिरके मनवा के मोर।4//

सरसों फुलल देहिया रे सखिया
महकल चारो ओर।
पीहू पीहू बोले रे पपीहरा ,
थिरके मनवा के मोर।5//

एहि बरस लगनिया रे सखिया
हरदी लगो पोर पोर।
पीहू पीहू बोले रे पपीहरा ,
थिरके मनवा के मोर।6//
©सुनील कुमार सोनू
25/04/2020

Saturday, April 25, 2020

मित्र तुझे भी याद है ना!

शीर्षक:मित्र तुझे भी याद हैं ना!
दिनांक13/04/2020
विधा:नवगीत
मापनी:16/16

बचपन के दिन वो सुहाना ।16
नदी नाले में वो नहाना।16
नीम आम की डाली पे,16
लुका-छिपी का खेल रचाना।16

*******************
मित्र  तुझे भी याद  है ना।16।।
******************
अहरा के ऊंचे टीले पे,16
ओरहा बहुत  खाते थे।16
अड़ोसी पड़ोसी खेतों से,16
गन्ने भुट्टा बहुत चुराते थे।16
गांव से दूर चबूतरे पे ,16
सांझ को खूब गप्पे लड़ाना।16
***********************
मित्र तुझे भी याद हैं ना!
***********************
काँच की रंगीली गोलियां,16
माटी की शर्मीली चुकड़ियां,16
अंडी चुनना,बैर तोड़ना,16
डोभर मे उड़ाना तितलियां।16
गुल्ली डंडा लट्टू औ पतंग,16
खेल-खेल में मार मचाना।16
***********************
मित्र तुझे भी याद हैं ना!
**********************
पाठशाला के दिनों में तो,16
ढेरों  बहाने बनाते थे।16
 मृत दादी नानी दादा को,16
बहुधा  बार मार आते थे।16
ताड़ और घास के पत्ते से,16
आठ आने का पान खाना।16
***********************
मित्र तुझे भी याद हैं ना!16
************************
समय बीते ,बीते सब काल ,16
उम्र ने दागे कई सवाल।16
रोजी रोटी के चक्कर मे,16
जीवन निर्झर  हुई बेहाल ।16
यूँ कश्ती भी भूल गई है,16
कागज वाली आज ठिकाना।16
©सुनील कुमार सोनू

Friday, April 24, 2020

दिनकर वह सूरज है, जो कभी अस्त नही होता है

राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर की आज पुण्य तिथि पर एक कोशिश उनको काव्य रचित श्रद्धांजलि देने की।

दिनकर वह सूरज है,जो कभी अस्त नही होता है।
लाख घना अँधेरा हो,वो कभी पस्त नही होता है।
संघर्ष करता हुआ हर आदमी के संग है वो,
उसकी ओजस्वी कविता,कभी ध्वस्त नही होता है।

सिमरिया बेगूसराय बिहार का लाल है वो।
नवयुग परिवर्तन का जलता मशाल है वो।
ऊर्जा साहस  देश प्रेम का मिशाल है वो।
रश्मिरथी रचने वाले हृदय विशाल है वो।
उनकी अक्षय काव्यरचनाओं में ढूंढो तो,
जोश जुनून उम्मीद का अभावग्रस्त नही होता है।
दिनकर वह सूरज है,जो कभी अस्त नही होता है।

संसद मंत्री को चुनौती देते हमने देखा है।
बंजर दिल पे डक़ैती करते हमने देखा है।
सन्नाटा को चीरते वो आवाज सुनाई देता है।
शब्द शब्द में मुस्काते तस्वीर दिखाई देता है।
ग़रीबी बेरोजगारी लाचारी के खिलाफ बुलंद स्वर,
राजनीतिक प्रभाव से वो अस्तव्यस्त नही होता है।
दिनकर वह सूरज है,जो कभी अस्त नही होता है।

कुरुक्षेत्र रश्मिरथी में योद्धाओं के मान बढ़ाते है।
महाभारत की मनोरम गाथा किश्तों में समझाते है।
कर्ण अर्जून भीम दुर्योधन याकि द्रौपदी दुश्शासन,
भीष्म कृष्ण और गुरुजनों के संग न्याय कर जाते है।
अलौकिक कथा भगवान की लीला के वर्णन में,
वीर अभिमन्यु शकुनी मामा भी त्रस्त नही होता है।
दिनकर वह सूरज है,जो कभी अस्त नही होता है।

रेणुका, हुंकार, उर्वशी कितने है रचना इनकी।
धूप और धुँआ, परशुराम की प्रतीक्षा इनकी।
समर शेष है,सिंघासन खाली करो,कृति इनकी।
"कलम आज उनकी जय बोल"स्मृति इनकी।
"जीना हो तो मरने से नही डरो रे"पढ़के बोलो,
सैकड़ों कवि है जगत में,तुम-सा मस्त नही होता है।
दिनकर वह सूरज है,जो कभी अस्त नही होता है।
©सुनील कुमार सोनू"दिव्य"
24/04/2020

Thursday, April 23, 2020

साधु रे अब तो तलवार उठाओ

साधु रे अब तो तलवार उठाओ।
परशुराम को ललकार जगाओ।
अपना अस्मत आप बचाओ,
प्रशासन से मत गुहार लगाओ।

कौन सुनेगा पंडितों की वाणी।
दबे कुचले पीड़ितों की कहानी।
जनता जनार्दन का कटा अँगूठा,
मूक बधिर सी इनकी जुबानी।
त्यज जनेऊ माला पोथी पत्रा,
शंख फूको रन हुंकार लगाओ।
साधु रे अब तो तलवार उठाओ।

शास्त्र की शिक्षा बेकार गयी,
अब शस्त्र की दीक्षा भेंट कर।
लँगोटी कसो,चुटिया कटाओ,
 लड़ने को एड़ी चोटी एक कर।
अनुलोम विलोम की भाषा बदलो,
सिंहासन मुद्रा में दहाड़ लगाओ।
साधु रे अब तो तलवार उठाओ।

विनय विनीत को कायर समझे,
ठेठ ठठेरा मुच्छर बलशाली है।
जोगी गेरुआ को शायर समझे,
कहाँ इनमे रक्तरंजित भुजाली है।
अग्नि को पियो,वर्षा को सोखो,
गली गली में हाहाकार मचाओ।
साधु रे अब तो तलवार उठाओ।

शांति कब मिली समझौतों से,
 क्यों बात करने इन भूतों से,
राम बलराम कर चुके सन्धि,
परिणाम क्या हुआ शांतिदूतों से,
योगी क्रांति की मिसाल जले,
भगवा पगड़ी  फुफकार लगाओ।
साधु रे अब तो तलवार उठाओ।

राष्ट्र चेतना के सुर संगम में,
जब ब्रह्मांड ओमकार से गूंजेगा।
जड़ चेतन खग खगोल विहंगम से,
तब अखण्ड नमोकार में गूंजेगा।
हर हर महादेव,जय जय भवानी,
एक स्वर में जयकार लगाओ।
साधु रे अब तो तलवार उठाओ।
©सुनील कुमार सोनू
23।04।2020



Friday, April 17, 2020

हाय! रोटी सूंघ के जिंदा हूँ मैं।

हाय!रोटी सूंघ के जिंदा हूँ मैं ।
हाँ! यही सोच के शर्मिंदा हूँ मैं।

कुकुर खाये मांस मछरी,
बिल्ली पिये दूध मलाई।
तोता खाये हरियर मिरची,
घोड़ा खाये चना दलाई।
निर्लज क्रूर नियति के मारे,
भूखे पेट चुनिंदा हूँ मैं।

कोई आलीशान महल में सोवे।
कोई माई के फटल अचरा में  रोवे।
हड्डी देह में नही तनिको खून पानी,
कोई चिपक के दुधमुंहा चुचुक टटोवे।
देख ले देश जगत के रत्नों,
चलता फिरता मुर्दा हूँ मैं।

सोने की चिड़िया कह ले,
अरे सौ दंभ और तू भर ले।
मंदिर मस्जिद गिरजाघर में,
ढोंग पाखंड और तू कर ले।
मेरे मिट्टी छीन के फूल उगाए,
और कहे धूल गर्दा हूँ मैं।

हाय लगेगी हम गरीबों की,
कब तक कोशूं नसीबों की।
वोट बैंक की तुष्टिकरण में,
जीत न होती हम रक़ीबों की।
थूक दिया पान समझ के,
क्या कत्था सुपारी जर्दा हूँ मैं।
स्वरचित एवं मौलिक रचना
©सुनील कुमार सोनू
17।04।2020

Thursday, April 16, 2020

समय से किसकी दोस्ती यारी है

Gajal of Mango Man(आम आदमी का ग़ज़ल)

समय से किसकी दोस्ती  यारी है।
आज इसकी तो कल उसकी बारी है।1//

जीवन मृत्यु दोनों एक चौखट पे,
युगों से आने-जाने की तैयारी है।2//

उसके अदालत में बेईमानी नही,
चाहे राजा हो या कि भिखारी है।3//

मानव दानव या  स्वयं माधव हो,
वक़्त के आगे हर शै हारी है।4//

कर्म धर्म ही विश्व प्रधान है,
निज हुनर ही पूजा पुजारी है।5//

परिवर्तन ही संसार का नियम,
यही सूचना जनहितकारी है।6//

शीश हमेशा कटा है घमंड का,
समय ही द्विधारी तलवारी है।7//

जो होता सब प्रभु की लीला,
काल ही तो कलमधारी है।8//

जिंदगी की मोल चूका दे सोनू,
बाकी चंद सांसे ही तो उधारी है।9//
©सुनील कुमार सोनू
16।04।2020

Wednesday, April 15, 2020

डर लगता है इंसान से

खौफ़ नही भगवान से।
डर लगता है इंसान से।1//

रिश्ते बेदाग़ नही मिलते,
सजग रहो मेहमान से।2//

स्वर्ग नरक के फेरे में,
धर्म बटे गीता कुरान से।3//

मजहबी क्यों आग उगले,
क्या यही सीखते संस्थान से।4//

लहू एक है, वतन एक है,
तो काहे परेशानी राष्टगान से।5//

बोलो,कहीं छत मिलेगा क्या,
गर कूच करोगे विमान से।6//

सहूर सीखो,जिंदा हो जा लाशों,
नही तो गुजरोगे शमशान से।7//

बे सिर पैर की बात न कर,
दे ना  दुहाई संविधान से।8//

अमन चैन से जो रहो तुम,
दूजा न मुल्क़ अच्छा हिंदुस्तान से।9//
©सुनील कुमार सोनू
13।04।2020

Saturday, April 4, 2020

मैं वृक्ष हूँ।

मैं वृक्ष हूँ,
तेरे पुरखों का धरोहर
सात पीढ़ियो का साक्ष्य
मुझे मार रहे हो।
या खुद को उजाड़ रहे हो।
मैं नही तो तू
कहाँ रह पायेगा।
आती जाती सांसे
कहाँ भर पायेगा।
मुझे थोड़ा सहेज ले
नही तो बेमौत मरेगा तू।
दाह संस्कार को न मिलेगी लकड़ी,
फिर कैसे जरेगा तू।
सुनील कुमार सोनू
04।04।2020jindagi,love,life

Wednesday, April 1, 2020

21वीं सदी है हुनर देखिए

न तज़ुर्बा न उमर देखिए।
21वी सदी है हुनर देखिए।

कैसा होगा ठाठ बाट उसका,
सुनसान ये खंडहर देखिए।

कितनी दिलकश होगी वो,
ये लहराती हुई चुनर देखिए।

कभी था लबालब पानी से भरा,
गांव का कुंआ नहर देखिए।

सांप बिच्छू से भी जहरीला है,
मुँह से उगलता  जहर देखिए।

ग़द्दारी नही करता है वो आजकल,
सीधे भोंकता सीने में खंजर देखिए।
hunar,love, tajurba
:सुनील कुमार सोनू
:01/04/2020