Wednesday, October 16, 2019

इसलिए दुबारा मिलना जरूरी था।

दिल के कुछ ख्वाहिश अधूरे थे,
इसलिए दुबारा मिलना जरूरी था।
अधरों के कुछ गुजारिश अधूरे थे
इसलिए दुबारा मिलना जरूरी था।
ना मिलने की सुंकूँ मिले
ना बिछुड़ने के ग़म मिले।
उधेड़बुन में जीते रहे हम,
औऱ वक़्त बहुत कम मिले।
पापी मन के कुछ फरमाइश अधूरे थे
इसलिए दुबारा मिलना जरूरी था।

वो जो कह ना सके,
दिन के उजाले में।
वो जो कर ना सके,
रात के हवाले में।
विशाले यार की कुछ रंजिश अधूरे थे।
इसलिए दुबारा मिलना जरूरी था।
कुछ अनसुनी सवाल थे
कुछ अनकही जवाब थे
कच्ची उम्र के हौंसले थे
कुछ अनलिखी किताब थे
पलकों तले कुछ बारिश अधूरे थे।
इसलिए दुबारा मिलना जरूरी था।

दिल के कुछ ख्वाहिश अधूरे थे,
इसलिए दुबारा मिलना जरूरी था।
अधरों के कुछ गुजारिश अधूरे थे
इसलिए दुबारा मिलना जरूरी था।
रचनाकार:सुनील कुमार सोनू
Tonight:1:45-2:15
Wednesday
16।10।19







आज फिर से वो सजी है दुल्हन सलीका।

मेहंदी रची है हांथों में।
पायल बंधी हैं पाँवों में।
काजल लगी है आंखों में।
गजरा सजी है बालों में।
माथे पे कर ली है कुमकुम का टीका।
आज फिर से वो सजी है दुल्हन सलीका।

लाल लाल रेशमी ये घाणी चुनर है,
जो कंचन काया पे लहराए।
खन खन करती ये चूड़ियों की हुनर है,
जो मोह माया में उलझाए।
व्यर्थ चाँद की तारीफ ना कर पगले,
आज लगे मुझको, इसके आगे सब फीका।
क्योंकि आज फिर से वो सजी है दुल्हन सलीका।

 पीहू पीहू की तान लिए।
अधरों पे  मुस्कान लिए।
प्रेम आँचल में संजोयी है,
खुशियों की गुलिस्तान लिए।
आज अति भाये मुझको,
लगे कामिनी स्वरूपा।
क्योंकि आज फिर से वो सजी है दुल्हन सलीका।

न्योछावर तुझीपे ये वर्षों की कमाई दौलत,
की मेरी अंगूठी का नगीना है तू।
सब हार के भी तुझे जीतू,
की मेरी जिंदगी का वीणा है तू।
आज प्रतीत होते की तुझे पहली दफ़ा देखा।
क्योंकि आज फिर से वो सजी है दुल्हन सलीका।
तिथि:17.10.19
समय:2:55-3:58
लेखक: सुनील कुमार सोनू

Wednesday, October 2, 2019

सात सुरों का सरगम से। बने जो मधुर संगीत । वोही हो तुम,,, मेरे मन के मीत। वोही हो तुम ,,, मेरे मन के मीत

सात सुरों का सरगम से।
बने जो मधुर संगीत ।
वोही हो तुम,,,
मेरे मन के मीत।
वोही हो तुम ,,,
मेरे मन के मीत।
बदलते मौसम की सुंदरता तुझमे।
गुजरते आलम की चंचलता तुझमे।
जो ऋतुओं के बदल दे रीत,
वोही हो तुम मेरे मन के मीत।

इस भँवरे की गुंजन तुझसे।
इस सांवरे की मधुवन तुझसे।
जिसे प्रेम करूँ मैं आशातीत।
वोही हो तुम मेरे मन के मीत।

तेरे संग कटे ऐसे ही सफर।
हो दिन दोपहर या शामो सहर।
जिसके सहारे पल पल जाए बीत।
वोही ही तुम ,मेरे मन के मीत।

सात सुरों का सरगम से।
बने जो मधुर संगीत ।
वोही हो तुम,,,
मेरे मन के मीत।
रचनाकार:सुनील कुमार सोनू
तिथि:02.10.2019

Saturday, September 21, 2019

Austemper Ductile Iron:ADI

ADI is a young material. Which can replace to steel forged alloys. Which can displace to Aluminum & Magnesium Alloys. Because of high strength to weight ratio. Because of potential cost savings ratio. Because of high fatigue strength and toughness. Because of high damping performance. Because of intermediate quality of steel & ductile iron. Because of substitute property of wear and crack propagation. Because of noise problem solution. Because of low energy consumption. ADI is a young material. It's 10% lighter than steel. It's cheaper than forged steel. It can withstand workload at -48degree Celcious.(-120F) It can understand the designer's rejoice. ADI is a young material. It is used in cam and crack shaft. It is used in gear and drive shaft. It is used in rail brake shoes and wheels. It is used in knuckle, excavator & trolley wheels.ADI is a young materialIt is new hope of ductile iron #castings
ADI is a young material.
It is new zeal of Alternate #sourcing. It is solution of #automotive material. It is resolution of locomotive material.
Written date:21.09.19

Monday, September 9, 2019

एक दिन उड़ी जइहैं सुगना पिंजड़वा छोरी के।

एक दिन उड़ी जइहैं सुगना
पिंजड़वा छोरी के।
पिंजड़वा छोरी के हो पिंजड़वा छोरी के।
एक दिन ........
धन दौलत और कोठा अटारी,
रिश्ते नाते और कुटुम्ब परिवारी,
छोड़ी जइहैं माया के बन्धनमा तोड़ी के।
एक दिन उड़ी जइहैं सुगना पिंजरवा छोड़ी के।
एक पल में देखो साँसे निकले,
दूजे पल में देखो लांशे निकले,
अगिया में जार दिहिं बदनमा मरोड़ी के।
एक दिन उड़ी जइहैं सुगना
पिंजड़वा छोरी के।
पिंजड़वा छोरी के हो पिंजड़वा छोरी के।
एक दिन ........
मुट्ठी बांध के आये हाथ पसारे चले गए,
अंतिम दर्शन को अँखियाँ तरसे राह निहारे चले गए,
चली गईले दुलरुआ जेकरा रखनी अगोरी के।
एक दिन उड़ी जइहैं सुगना
पिंजड़वा छोरी के।
पिंजड़वा छोरी के हो पिंजड़वा छोरी के।
एक दिन ........
हँसा उड़ी गईले अकासवा,
धागा नाही हमरे पसवा,
जाने कौन जनमवा मिलिहैं बदनमा गोरी के।
एक दिन उड़ी जइहैं सुगना
पिंजड़वा छोरी के।
पिंजड़वा छोरी के हो पिंजड़वा छोरी के।
एक दिन ........
गीतकार:सुनील कुमार सोनू
तिथि:08.09.19

Friday, September 6, 2019

काल घड़ी जब आई रे भाई।

सोना सरीखी देहिया माटी में मिल जाई रे भाई;
काल घड़ी जब आयी।
काल घड़ी जब आयी रे भाई
काल घड़ी जब आयी।
माटी के चीज माटी में मिल जाई रे भाई,
काल घड़ी जब आयी।

राजा रंक फ़कीरा रोवे
नानक तुलसी कबीरा रोवे
ठगनी माया के हाथ संसार ठगाई रे भाई,
काल घड़ी जब आयी।

जार जोरू जमीन में उलझी
धरम करम के बात न सुलझी
एक और जिन्गी व्यर्थ गवाई रे भाई,
काल घड़ी जब आयी।

नाही केहू गुरु नाही केहू चेला रे साधु,
भीड़ भरल दुनिया मे हंस उड़े अकेला रे साधु,
अंखिया के कोरवा में गंगा बही जाई रे भाई;
काल घड़ी जब आयी।

रोई रोई भजनिया लिखे
हंसी हंसी गावे हो रामा,
सोनू औऱ गोलुआ के
बतिया न समझ पावे हो रामा,
विधि के विधान मिटे न मिटाई रे भाई;
काल घड़ी जब आयी।

सोना सरीखी देहिया माटी में मिल जाई रे भाई;
काल घड़ी जब आयी।
काल घड़ी जब आयी रे भाई
काल घड़ी जब आयी।
लेखनी:सुनील कुमार सोनू
तिथी:05.09.2019

Thursday, August 29, 2019

हाँ, मैं कलम हूँ।

मैं औरों की तरह नही मित्रा
सजा-संवरा कोई वास्तु नहीं
मुझे गहे बिना आजतक
हुआ कोई अरस्तु नहिं
परिचय क्या दूं अपना
हूँ मै केवल हकीकत 
बाकी सारे दिवा-सपना
बेजान हूं पर जन लिए हूं 
मृत हूँ पर मुस्कान लिए हूं 
मै ही सत्यम -शिवम्- सुन्दरम हूं 
आहा ! ठीक कहा आपने,मैं तो कलम हूँ 
हाँ,मैं कलम हूँ जिसमें
सुभाष की दृढ़ता है,
भगत की निडरता है
शेखर की स्वतंतत्रा है,
गाँधी की सहिष्णुता है
हाँ, मैं ही कलम हूँ जो
राणा या झाँसी की तलवार है,
कुंवर या तिलक की ललकार है
अभिमन्यु या खुदीराम की वार है,
हिमालय या शिवाजी सी पहरेदार है
हाँ, मैं कलम ही हूँ जिसने 
तुलसी,कबीरा नानक को अमर किया
भाव- वेदना-संवेदना को सुंदर किया
हाँ, मैं कलम ही हूँ जिसने
एकता-विद्वता-मित्रता का पाठ पढ़ाया
प्रेम-त्याग-संकल्प का जाप कराया
हाँ,मैं कलम हूँ जो 
चंदन में आग खोज लेता है
बिरानों में अनुराग खोज लेता हे
हाँ,मैं कलम हूँ जो
बिना मौसम के
गर्मी पैदा करवा दूँ
कहो तो अभी आंखों से
हजारों झरने बहवा दूँ
हाँ,मैं कलम हूँ जो
श्रृष्टि के पहले भी था 
और बाद तक रहेगा
अंत में बस यही कहूँगा
देवी-देवता,नर-नारी
पशु-पक्षी या प्राणी संसारी
सारे के सारे विनाशी हैं
एक अकेला कलम है
जो चिर-अविनाशी है

http://kavimanch.blogspot.com/2008/11/blog-post_437.html?m=1

Tuesday, August 27, 2019

अब जरूरी है।

आतंकी सिरफिरे का सिर काटना अब जरूरी है।
इसके बंद मुठ्ठी को अंगुलियों में बाँटना अब जरूरी है।।

ना हम मौनधारी है,
ना हम मूकदर्शक है।
ना हाँथो में हथकड़ी है,
ना पैरों में बेड़ी है।
आजाद भारत की आजादी बताना अब जरूरी है।
एक के बदले दस हमले करवाना अब जरूरी है।।

पाँव घुसे तो पाँव काट लेना ही उचित है।
आँखे तरेरे तो आँख निकाल लेना ही उचित है।
न्याय मिलता नही खाली कोरी समझौतों से।
कीमत चुकाने पड़ते हैं बम बारूद तोंपो से।
शांति की लहरें बहती नही तब तक।
क्रांति की मिसालें जलती नही जब तक।
चौकन्ना होके खिड़की दरवाजे दीवारों से झांकना अब जरूरी है।
कितने परमाणु बनाये पड़ोसी ने आँकना अब जरूरी है। ।

जय हिन्द ही मेरा धर्म है ,
वंदे मातरम ही मेरा कर्म है,
जन गण मन ही नारा है।
जो इसको नकारे,
वो मेरा दुश्मन,राष्ट्र का दुश्मन,
 हमने उसको ललकारा है।
राष्ट्र विरोधी बात न करना,
चाहे नेता हो या अभिनेता हो।
गिन गिन के,चुन चुन के मारेंगे,
 चाहे मुफ़लिसी हो या विजेता हो।
शंखनाद की भीष्ण हुंकार सुनाना अब जरूरी है।
दुनिया को अपना ताकत दिखाना अब जरूरी है।।

तरकश में तीर बहुत है।
अंतस में पीड़ बहुत है।
दाल रोटी की लालच नही,
अपने घर मे खीर बहुत है।
परिचय देने को मोहताज नही भारत,
अपने हिस्से में कश्मीर बहुत है।
गुनाह किये तो सजा भी मिलेगी जालिमों,
अपने जेलों में जंजीर बहुत है।
वतन पे मर-मिटने वालों की कमी नही,
अपने दिल मे शहिदों की तस्वीर बहुत है।
बहुत है बहुतेरों जैसी इसे गुनगुनाना अब जरूरी है।
खंडित भारत को अखंड भारत बनाना अब जरूरी है।।
।जय हिंद जय भारत ।
लेखन तिथि:27.08.19

Monday, August 12, 2019

अगर तू कहे।

दर्द ए दिल की सदा सुना दूँ, अगर तू कहे।
दिल चिर के दिखा दूँ x२,अगर तू कहे।
कितने सपने संजोये थे प्यार में
कितने अपने पराये थे प्यार में
एक एक लड़ी रूठे कैसे
एक एक कड़ी टूटे कैसे
पढ़ ले तू डायरी मेरा
फिर इसे जला दूँ, अगर तू कहे।

भीगी भीगी बारिश की बूंदों में
साँसों का जलना क्या था
टूक टूक करते दो जोड़ी आँखों मे
अरमानों का मचलना क्या था
अहसास की ये कमाई दौलत
मैं यूँ ही लूटा दूँ, अगर तू कहे
सुनील कुमार सोनू
12।08।2019

Sunday, August 11, 2019

She is behind me.

Whenever it rains
Whenever it shines
Whenever it colds
She is behind me.

Whenever it darkens
Whenever it lightens
Whenever it brightens
She is behind me.

From sorrorow to happy moments
From ugli to beauty moments.
From horrible to sweety moments
She is behind me.

 In the like & dislike condition.
In the hounor & dishounor condition.
In the smile & tears situation.
She is behind me.

Let me tell you,
Who is she
She is none other
But she is my wife.
My wife ,my life.
11.08.2019




She is behind me.
Whenever it rains
Whenever it shines
Whenever it colds
She is behind me.
Whenever it darkens
Whenever it lightens
Whenever it brightens
She is behind me.
From sorrorow to happy moments
From ugli to beauty moments.
From horrible to sweety moments
She is behind me.
 In the like & dislike condition.
In the hounor & dishounor condition.
In the smile & tears situation.
She is behind me.
Let me tell you,
Who is she
She is none other
But she is my wife.
My wife ,my life.
11.08.2019