Thursday, April 30, 2009

प्यार का रंग अभी तक चोखा है


बदल गया सबकुछ मगर प्यार का रंग अभी तक चोखा है सुख जाए भले ही नदियाँ-सागर आंखों पे हमें पूरा भरोसा है .

Wednesday, April 15, 2009

dil dosti love zone: खून बहती थी मिलके जब पसीने में.

dil dosti love zone: खून बहती थी मिलके जब पसीने में.

इश्क-विश्क


चुरा के दिल किसी का
क्यों
अपने पास रखते हो.
शीशे
की तरह टूट जानेवाले
क्यों
एहसास रखते हो.
अजी बुल-बुला सी होती है
इश्क-विश्क की बातें,
क्यों कोरी बातों पे विश्वास रखते हो.
वो जिसे चाहा छन भर में उसे भुला दिया
एक हमही थे जो उसे भुलाने में,एक युग लगा दिया

Sunday, April 12, 2009

औरत क्या चीज है.



औरत ख़ुद नही जानती औरत क्या चीज है,
वो तो हिरन की तरह मुर्ख है,
जो
कस्तूरी की महक में पागल होके
वन
-वन भटकती है.
जबकि
उसे
नही मालूम
कस्तूरी
उसी का है
वो भी उसके अन्दर.
और
जो
पहचान लेती है अपने छिपे इस कस्तूरी को
वो औरत मर्द बन जाती है
तब नाम-काम-धाम
सबकुछ हासिल कर लेती है.
जिसे पाने की हसरत
हर किसी को है
चाहे हो स्त्री हो या पुरूष.

खून बहती थी मिलके जब पसीने में.


दर्द के दिन भी क्या बीते मजा आए न जीने में.
सुख के अमृत भी जैसे जहर लगे पिने में.
जिंदगी का मर्म समझता था तब मैं पल-पल
खून बहती थी मिलके जब पसीने में.
वो भी क्या दौर था किस्मत को चुनौती दिया करते थे
जोश-जज्बा रग-रग बनके दौरती थी सिने में.
न हाथ-पाँव दुखते थे ,न दिल -दिमाग थकता था
झूमते-गाते रहते थे साल के पूरे महीने में.


इश्क में कोई दम नही


.प्यार जिसे हुआ उसे तो अमर होना ही है,
क्योंकि महबूब की यांदे मरने की इजाज़त नही देती

इश्क की दुनिया बड़ी अजीब है.
कोई इसमे राजा तो कोई गरीब है.
फसलों का क्या मतलब नगरों से,
दिल ने कहा दूर तो दूर है वरना
दिलबर तो शून्य के करीब है.

Friday, April 10, 2009

महब्बत अब सिर्फ़ मजाक भर है.


रिश्ते-नाते और उसूल खाक भर है.
मोहब्बत अब सिर्फ़ मजाक भर है.
अरे,सबकी निगाहें गोल-गोल पे
संवेदना महज बकबास भर है.
धज्जियाँ उड़ने लगी हरेक शै की
असल में अच्छाई बात भर है.
तरस आए इश्क में चूर लोगों पे
मजा इसमे डाल-पात भर है.
समझाए
कोई नादान जवानी को
इश्क बस विरह-विलाप भर है
लुटने -
-लूटाने का दौड़ है अभी
सत्य
-ईमान-धर्म नकाब भर है.
वक़्त
अभी है जान ले दुनिया को,ये
नई
बोतल में पुरानी शराब भर है.
रचना की तिथि---०९/०४/०९
बेला
---- सुबह
की

महब्बत अब सिर्फ़ मजाक भर है.

रिश्ते-नाते और उसूल खाक भर है.
महब्बत अब सिर्फ़ मजाक भर है.
अरे,सबकी निगाहें गोल-गोल पे
संवेदना महज बकबास भर है.
धज्जियाँ भर लगी हरेक शै की
विलाप भर अच्छाई विलाप बात भर है.
तरस आए इश्क में चूर लोगों पे
मजा इसमे डाल-पात भर है.
समझाए
कोई नादान जवानी
इश्क बस विरह-विलाप भर है
lutane
-लुटाने दौड़
सत्य-अभी-धर्म नकाब भर है.
वक़्त
अभी है जान ले दुनिया को,ये
नई
बोतल में पुरानी शराब भर है.
रचना की तिथि---०९/०४/०९
बेला
---- सुबह की

Sunday, April 5, 2009

तुम झूठ-मूठ के शराब पीते हो ।


नशा तो होती है दिलकश जवानी में
नैनों की झील में ' होठों की दो बूंद पानी में
क्यों
चेहरे पे लिए नकाब जीते हो
तुम झूठ-मूठ के शराब पीते हो

फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.












मेरी हर खवाहिश जली तेरी जुदाई के आग में

फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.

जिस कलेजा में तू रही उसी को तूने काट दिया
जिस्म और जान को तूने नदी किनारे सी बाँट दिया
दाग ही दाग मिला दिल में हसीना तेरे हुश्न बेदाग़ में.
फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.

जख्म जो दिया तूने अभी तक ताज़ा नासूर है
तेरी बेबफाई का चर्चा गली शहर में मशहूर है
डंसी तो पता चला इतना जहर नहीं किसी बिशैला नाग में
फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.

तेरे हिस्से में हरेक दिन होली हरेक रात दिवाली है
अपने हिस्से में बर्बाद जवानी और शराब की प्याली है
हाथ लगा तो बस अँधेरा तेरी मोहब्बत के चिराग में.
फुल तो फुल कांटे भी मिली हरजाई तेरे बाग़ में.

रचना की तिथि---02/04/09
time=== 11to12pm NIGHT
din-- गुरुवार

Friday, April 3, 2009

मेरी हर खवाहिश जली तेरी जुदाई के आग में
फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.

जिस कलेजा में तू रही उसी को तूने काट दिया
जिस्म और जान को तूने नदी किनारे सी बाँट दिया
दाग ही दाग मिला दिल में हसीना तेरे हुश्न बेदाग़ में.
फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.

जख्म जो दिया तूने अभी तक ताज़ा नासूर है
तेरी बेबफाई का चर्चा गली शहर में मशहूर है
डंसी तो पता चला इतना जहर नहीं किसी बिशैला नाग में
फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.

तेरे हिस्से में हरेक दिन होली हरेक रात दिवाली है
अपने हिस्से में बर्बाद जवानी और शराब की प्याली है
हाथ लगा तो बस अँधेरा तेरी मोहब्बत के चिराग में.
फुल तो फुल कांटे भी मिली हरजाई तेरे बाग़ में.

रचना की तिथि---02/04/09
time=== 11to12pm NIGHT
din-- गुरुवार


कर ले निश्चय
जीवन के पथ पे
कदम बढ़ते रहोगे
कर ले निश्चय