Wednesday, April 15, 2009

इश्क-विश्क


चुरा के दिल किसी का
क्यों
अपने पास रखते हो.
शीशे
की तरह टूट जानेवाले
क्यों
एहसास रखते हो.
अजी बुल-बुला सी होती है
इश्क-विश्क की बातें,
क्यों कोरी बातों पे विश्वास रखते हो.

2 comments:

  1. दिल चुराकर चल दिये तुम दूर साहिब
    ये नहीं है इश्क का दस्तूर साहिब
    हिन्द युग्म पर मेरी गज़ल पर टिपण्णी हेतु आभार।

    कविता या गज़ल में हेतु मेरे ब्लॉग पर ्सादर आमंत्रनण है आपको
    http://gazalkbahane.blogspot.com/ कम से कम दो गज़ल [वज्न सहित] हर सप्ताह
    http:/katha-kavita.blogspot.com/ दो छंद मुक्त कविता हर सप्ताह कभी-कभी लघु-कथा या कथा का छौंक भी मिलेगा
    सस्नेह
    श्यामसखा‘श्याम

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aapka bahut-bahut dhanybad