Friday, March 20, 2020

मां की दुआ का असर भी होगा

रात हुई है तो सहर भी होगा।
मां की दुआ का असर भी होगा।

ऋतुओं का क्या, बदलते रहना,
फिर से हरा भरा मंजर भी होगा।

पिटवा लोहे  सा हौंसला रख,
चट्टान ये कंकड़ पत्थर भी होगा।

जो कुल चराग़ों के बुझाएं है,
श्रापित घर उसका खंडहर भी होगा।

दोस्ती कर ये दोस्त ,ज़रा सम्भल के,
मुख में राम बगल में खंजर भी होगा।

सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर रहो 'सोनू'
राहों में जादू-टोना जंतर मंतर भी होगा।
:सुनील कुमार सोनू
:20|03|2020
:समय-7:50-8:20AM, बस में ऑफिस जाते वक्त 

ये नारी कौन है

रति रूप धरा पे
 ये नारी कौन है।
कामिनी स्वरूप धरा पे
ये नारी कौन है।

आईना बोल उठे
स्वर्ग सुन्दरी से
प्रेम मंजरी से
कहाँ तेरा घर है।
कौन तेरा वर है।

पिया को मन भाए
 तूने ऐसा श्रृंगार किया।
गहनें जेबर चूड़ी कंगन से
रूप तूने निखार लिया।

किसी हंस की हँसिनी हो।
या नव दुर्गा की वंशिनी हो।
तुम हो मात्र प्रतिबिम्ब,
या विष्णुप्रिया मोहिनी हो।

भूल बैठा खुद को,
उलझ गया मैं तुझमे।
नही पता है रूपसी,
 तू मुझमे या मैं तुझमें।
बुद्धि मेरी बौन है।
तू ही बता दे सखी,
ये नारी कौन है।

रति रूप धरा पे
 ये नारी कौन है।
कामिनी स्वरूप धरा पे
ये नारी कौन है।

:सुनील कुमार सोनू
:21।03।2020
:समय:7:35-8:16AM,
:स्थान: शालीमार पार्क,अलवर

Tuesday, March 17, 2020

बीस बरस बीत गये रे साथी

बीस बरस बीत गए रे साथी,
तूने खोज खबर नही ली।
 रंजिष क्यूँ निभाये रे साथी,
तूने खोज खबर नही ली।

दोनों एक दौड़ से गुजरे थे
शामिल जिसमे हरशु हरशु।
प्रेम प्रणय का उत्कृष्ट उदाहरण
ज़र्रे ज़र्रे  में भीनी ख़ुश्बू ख़ुश्बू।
राज दिल के ना बताये रे साथी,
तूने खोज ख़बर नही ली।

एहसास की कमाई दौलत,
बोलो कहाँ लुटाते हो।
क्या मुझसा ख़रीददार मिला,
या अफ़सोस जताते हो।
ऐसे कैसे कोई भूल जाए रे साथी,
तूने खोज ख़बर नही ली।

छत पे सुहानी धूप भी है
जामुन का वो पेड़ भी है।
खिड़कियों से ताकना एक दूजे को,
अभी वो बसेर भी है।
अब तू ना दिख पाए रे साथी,
तूने खोज ख़बर नही ली।

कितने उतार चढ़ाव देखे,
कितने मन मुटाव झेले।
लाखों की भीड़ में,
रहे हम अकेले-अकेले।
साथ न तूने निभाया रे साथी,
तूने खोज खबर नही ली।

यादों के मंज़र फरे
मन वृक्ष की डाली पे।
रातों के मंतर जपे
सूनापन की स्याह काली में।
और कहा ना जाए रे साथी,
तूने खोज ख़बर नही ली।

सूखे सूखे होली के दिन बीते
रूखे रूखे बीते दशहरा दीवाली।
बसंती मौसम  भी ऐसे बीते,
 जैसे बेसुध बेनूर पतझड़ मवाली।
भूतकाल बहुत सताये रे साथी,
तूने ख़ोज ख़बर नही ली।

ऐसा नही की जिंदगी तंग है।
ऐसा नही की हँसी बेरंग है।
ऐसा नही की धन दौलत ऐश्वर्य नही,
ऐसा नही की जीवन मे माधुर्य नही,
तुम बिन सब  निरुपाय रे साथी,
तूने खोज खबर नही ली।

बीस बरस बीत गए रे साथी,
तूने खोज खबर नही ली।
 रंजिष क्यूँ निभाये रे साथी,
तूने खोज खबर नही ली।
:सुनील कुमार सोनू
:17।03।2020
:बस में ऑफिस जाते वक्त
:समय-7:45-8:20AM

Sunday, March 15, 2020

इंचों की फासलें हैं, मिलों सी दूरी है

ये कैसी बेबसी है, ये कैसी मजबूरी है।
इन्चों की फासलें हैं, मिलों सी दूरी है।

शर्त क्यूँ है इतने इश्क़ में कहकहों की,
जबकि मोहब्बत अपनी शोख़ सिंदूरी है।

दो कदम साथ तू चल दे  संग संग,
भरम रिवाजों के टूटने भी जरूरी है।


नाज़ हो इश्क़ पे तो एलान कर अभी,
मैं तेरा कान्हा, तू मेरी राधिका छोरी है।

जिंदगी किसे मौका देता दुबारा तिबारा,
तेरी मेरी तो लाखों  मे एक जोड़ी है।

जमीन की मोहताज न रहा कर ,ए हुस्न
अंतरिक्ष को भी मात दे,तू वो चाँद चकोरी है।
:सुनील कुमार सोनू
:15/03/2020:दोपहर-13:00-13:50

मोहे अंग लगा ले सांवरिया

मेरो मन हो गयो बाबरिया।
मोहे अंग लगा ले सांवरिया।
अंग लगा ले सांवरिया...
मोहे अंग लगा ले सावरिया
मेरो मन हो गयो बाबरिया।
मोहे अंग लगा ले सांवरिया।

नाजुक नाजुक मेरी कलाई
मिश्री माखन मेरी मलाई
और पतरी पतरी मोरी कमरिया।
मोहे अंग लगा ले सावरिया।
मेरो मन हो गयो बाबरिया।
मोहे अंग लगा ले सांवरिया।
अंग लगा ले सांवरिया...
मोहे अंग लगा ले सावरिया।
मेरो मन हो गयो बाबरिया।
मोहे अंग लगा ले सांवरिया।

फ़ागन सो मेरो अल्हड़ जवानी।
अरे का वर्षा जब खेत सुखानी।
कुछ तो समझ मेरे बलम रसिया
मेरो मन हो गयो बाबरिया।
मोहे अंग लगा ले सांवरिया।
अंग लगा ले सांवरिया...
मोहे अंग लगा ले सावरिया
मेरो मन हो गयो बाबरिया।
मोहे अंग लगा ले सांवरिया।
:सुनील कुमार सोनू
समय:12:00-12:30,होली के दिन।
स्थान:अपना घर शालीमार पार्क,अलवर

मेरा इश्क़ ऐसे रूठा है।

मेरा इश्क़ ऐसे रूठा है।
जैसे आख़िरी सांस छूटा है।

बसंत की असर नही उसपे,
जैसे पेड़ आम का ठुठा है।

चकनाचूर है अरमान के सीसे,
उफ़्फ़ बड़ी ऊँचाई से टूटा है।

नही आया समझ अब तक,
मेरा हुस्न ख़रा  या खोटा है।

बिरह के ग़म  कितने बड़े बड़े
सहने को दिल बहुत छोटा है।

भोर क्यूँ  सोया है चादर ताने
रात डरावनी है घना सन्नाटा है।

दूर है इतना कोई किसलिए,
नफ़रत क्यूँ इतना मोटा है।

रचनाकार:सुनील कुमार सोनू
तिथि:07।03।2020
समय:10-10:30PM

। इन्चों की फासलें हैं, मिलों सी दूरी है।

ये कैसी बेबसी है, ये कैसी मजबूरी है।
इन्चों की फासलें हैं, मिलों सी दूरी है।

शर्त क्यूँ है इतने इश्क़ में कहकहों की,
जबकि मोहब्बत अपनी शोख़ सिंदूरी है।

दो कदम साथ तू चल दे  संग संग,
भरम रिवाजों के टूटने भी जरूरी है।


नाज़ हो इश्क़ पे तो एलान कर अभी,
मैं तेरा कान्हा, तू मेरी राधिका छोरी है।

जिंदगी किसे मौका देता दुबारा तिबारा,
तेरी मेरी तो लाखों  मे एक जोड़ी है।

जमीन की मोहताज न रहा कर ,ए हुस्न
अंतरिक्ष को भी मात दे,तू वो चाँद चकोरी है।

:सुनील कुमार सोनू
:15/03/2020:दोपहर-13:00-13:50

Sunday, March 8, 2020

।अँखियाँ भी रोये कुछ ऐसा दर्द दो।

अँखियाँ भी रोये कुछ ऐसा दर्द दो।
अँखियाँ भी रोये कुछ ऐसा दर्द दो।
दिल रोये तो रोये ये काफी नही,
अँखियाँ भी रोये कुछ ऐसा दर्द दो।

बारिष के मौसम में भी
दिल जेठ की दुपहरी सी तपे।
चैन नही इक पल भी
दिल बिछोह की आग में जले।
इसलिए ग़म-ए-जिंदगी,
अँखियाँ भी रोये कुछ ऐसा दर्द दो।
दिल रोये तो रोये ये काफी नही,
अँखियाँ भी रोये कुछ ऐसा दर्द दो।

अँखियाँ जो रोयेगा,सारा संताप धोएगा।
हुंक जो उठे दिल मे,वो नींद में सोयेगा।
फिर सारे संताप कम हो जाएगा।
फिर सारे अलाप काम हो जाएगा।
इसलिए ग़म-ए-जिंदगी,
अँखियाँ भी रोये कुछ ऐसा दर्द दो।
दिल रोये तो रोये ये काफी नही,
अँखियाँ भी रोये कुछ ऐसा दर्द दो।

रचनाकार:सुनील कुमार"सोनू"
लेखन तिथी:14।02।2016

। मेरे जिगर में बस...तेरा नाम लिखा है।

मेरे जिगर में बस...तेरा नाम लिखा है।
तू ही मेरी जिंदगी.. यही पैग़ाम लिखा है।

मेरी धड़कनों की जरूरत है तू
कसम से कहूँ बडी खूबसूरत है तू
तेरी घानी चुनर पे..ये ऐलान लिखा है।
तू ही मेरी जिंदगी.. यही पैग़ाम लिखा है।

मेरे जिगर में बस...तेरा नाम लिखा है।
तू ही मेरी जिंदगी.. यही पैग़ाम लिखा है।

मेरी वीराने महफ़िल की रंगत है तू
मेरी सुहाने सपने  की जन्नत है तू
तू पढ़ ले आँखों को,इसमे तमाम लिखा है।
तू ही मेरी जिंदगी.. यही पैग़ाम लिखा है।

मेरे जिगर में बस...तेरा नाम लिखा है।
तू ही मेरी जिंदगी.. यही पैग़ाम लिखा है।

जो तू कहे तो अभी जान गवा दूँ।
खाके जहर मैं अभी मरके दिखा दूँ।
दगा न करेंगे कभी..ये सरेआम लिखा है।
तू ही मेरी जिंदगी.. यही पैग़ाम लिखा है।

मेरे जिगर में बस...तेरा नाम लिखा है।
तू ही मेरी जिंदगी.. यही पैग़ाम लिखा है।

रचनाकार:सुनील कुमार 'सोनू'
तारीख:16/01/2020
समय:रात्री 10 बजे

एक दिन उड़ी जइहैं सुगना पिंजरवा छोड़ी के।

एक दिन उड़ी जइहैं सुगना
पिंजड़वा छोरी के।
पिंजड़वा छोरी के हो पिंजड़वा छोरी के।
एक दिन ........

धन दौलत और कोठा अटारी,
रिश्ते नाते और कुटुम्ब परिवारी,
छोड़ी जइहैं माया के बन्धनमा तोड़ी के।
एक दिन उड़ी जइहैं सुगना पिंजरवा छोड़ी के।

एक पल में देखो साँसे निकले,
दूजे पल में देखो लांशे निकले,
अगिया में जार दिहिं बदनमा मरोड़ी के।
एक दिन उड़ी जइहैं सुगना
पिंजड़वा छोरी के।
पिंजड़वा छोरी के हो पिंजड़वा छोरी के।
एक दिन ........

मुट्ठी बांध के आये हाथ पसारे चले गए,
अंतिम दर्शन को अँखियाँ तरसे राह निहारे चले गए,
चली गईले दुलरुआ जेकरा रखनी अगोरी के।
एक दिन उड़ी जइहैं सुगना
पिंजड़वा छोरी के।
पिंजड़वा छोरी के हो पिंजड़वा छोरी के।
एक दिन ........

हँसा उड़ी गईले अकासवा,
धागा नाही हमरे पसवा,
जाने कौन जनमवा मिलिहैं बदनमा गोरी के।
एक दिन उड़ी जइहैं सुगना
पिंजड़वा छोरी के।
पिंजड़वा छोरी के हो पिंजड़वा छोरी के।
एक दिन ........
गीतकार:सुनील कुमार सोनू
तिथि:08.09.19

।वक्त के लाठी में, यार शोर न होवे से।


वक्त के लाठी में, यार  शोर न होवे से।
जिसको पड़े वो खून के आँसू रोवे से।
अंधेरो ही अंधेरो लगे दिन दुपहरी भी,
मालिक एसो करो कि भोर न होवे से।

खौफ़ रख ख़ुदा का बंदे,
यू उल्टे-सीधे काम न कर।
कागज़ के टुकड़े कमाने में,
मानवता को बदनाम न कर।

इसी जन्म में सुन रे पगले
पाप पुण्य की गठरी धोवे से।

वक्त के लाठी में, यार  शोर न होवे से।
जिसको पड़े वो खून के आँसू रोवे से।
अंधेरो ही अंधेरो लगे दिन दुपहरी भी,
मालिक एसो करो कि भोर न होवे से।

जर जोरू जमीन के लफड़े से दूर रह।
बेफिजूल तरक-भरक कपड़े से दूर रह।
सरल सादगी जीवन जीकर पगले,
अपने सुकर्म से यश कृति  मशहूर कर।

बाजी पलटते  देर नही लगते,
वक़्त पे किसी का जोर न होवे से।

वक्त के लाठी में, यार  शोर न होवे से।
जिसको पड़े वो खून के आँसू रोवे से।
अंधेरो ही अंधेरो लगे दिन दुपहरी भी,
मालिक एसो करो कि भोर न होवे से।

:सुनील कुमार सोनू
:28।02।2020
:समय:7:30-8:05am,
बस में ऑफिस जाते समय।

हर हर महादेव

हर हर महादेव

मैं ही शून्य,मैं ही बिशाल ब्रह्मांड हूँ।
मैं ही औघड़,मैं ही विद्वान प्रकाण्ड हूँ।
मै ही चंद्र, मैं ही आकाशगंगा हूँ।
मैं ही धरती,मैं ही यमुना गंगा हूँ।
मैं  ही आदि,मैं ही अंत हूँ।
मैं ही सूक्ष्म, मैं ही अनंत हूँ।
मैं ही कैलाश,मैं ही हिमालय हूँ।
मैं ही देवेश, मैं ही देवालय हूँ।
मैं ही चल,मैं ही अचल हूँ।
मैं ही छल,मैं ही निश्छल हूँ।
मैं ही दृष्टि, मैं ही सृष्टि हूँ।
मैं ही अकाल,मैं ही वृष्टि हूँ।
मैं ही धूप ,मैं ही छांव हूँ।
मैं ही रूप,मैं ही उपनाम हूँ।
मैं ही नरोत्तम, मैं ही पुरुषोत्तम हूँ।
मैं ही उत्तम,मैं ही अतिउत्तम हूँ।
मैं ही सांस,मैं ही विस्वास हूँ।
मैं ही तो,जीने का उल्लास हूँ।
मैं ही रक्षक, मैं ही भक्षक हूँ।
मैं ही दक्ष, मैं ही दक्षक हूँ।
मैं ही नर,मैं ही नारी हूँ ।
मैं ही सुकुमार,मैं ही सुकुमारी हूँ।
मैं ही जननी, मैं ही जनक हूँ।
मैं ही धनकुबेर,मैं ही धनक हूँ।
मैं ही अन्न,मैं ही अन्नपुर्णा हूँ।
मैं ही स्वप्न, मैं ही सुवर्णा हूँ।
मैं ही नभमंडल,मैं ही पाताल हूँ।
मैं ही माया,मैं ही मायाजाल हूँ।
मैं ही अग्नि,मैं ही वर्षा हूँ।
मैं ही हर्षित, मैं ही हर्षा हूँ।
मैं ही गिरी,मैं ही गिरीश हूँ।
मैं ही ईश, मैं ही श्रीश हूँ।
मैं ही मैं,मैं भी मैं हूँ।
एक ही मैं,मैं तो मैं हूँ।
हर हर महादेव
:सुनील कुमार सोनू
:26/02/202
समय :07:25-8.05AM
स्थान:बस में ऑफिस जाते हुए।

मेरा इश्क़ ऐसे रूठा है।

मेरा इश्क़ ऐसे रूठा है।
जैसे आख़िरी सांस छूटा है।

बसंत की असर नही उसपे,
जैसे पेड़ आम का ठुठा है।

चकनाचूर है अरमान के सीसे,
उफ़्फ़ बड़ी ऊँचाई से टूटा है।

नही आया समझ अब तक,
मेरा हुस्न ख़रा  या खोटा है।

बिरह के ग़म  कितने बड़े बड़े
सहने को दिल बहुत छोटा है।

भोर क्यूँ  सोया है चादर ताने
रात डरावनी है घना सन्नाटा है।

दूर है इतना कोई किसलिए,
नफ़रत क्यूँ इतना मोटा है।

रचनाकार:सुनील कुमार सोनू
तिथि:07।03।2020
समय:10-10:30PM