Sunday, March 8, 2020

।अँखियाँ भी रोये कुछ ऐसा दर्द दो।

अँखियाँ भी रोये कुछ ऐसा दर्द दो।
अँखियाँ भी रोये कुछ ऐसा दर्द दो।
दिल रोये तो रोये ये काफी नही,
अँखियाँ भी रोये कुछ ऐसा दर्द दो।

बारिष के मौसम में भी
दिल जेठ की दुपहरी सी तपे।
चैन नही इक पल भी
दिल बिछोह की आग में जले।
इसलिए ग़म-ए-जिंदगी,
अँखियाँ भी रोये कुछ ऐसा दर्द दो।
दिल रोये तो रोये ये काफी नही,
अँखियाँ भी रोये कुछ ऐसा दर्द दो।

अँखियाँ जो रोयेगा,सारा संताप धोएगा।
हुंक जो उठे दिल मे,वो नींद में सोयेगा।
फिर सारे संताप कम हो जाएगा।
फिर सारे अलाप काम हो जाएगा।
इसलिए ग़म-ए-जिंदगी,
अँखियाँ भी रोये कुछ ऐसा दर्द दो।
दिल रोये तो रोये ये काफी नही,
अँखियाँ भी रोये कुछ ऐसा दर्द दो।

रचनाकार:सुनील कुमार"सोनू"
लेखन तिथी:14।02।2016

No comments:

Post a Comment

aapka bahut-bahut dhanybad