Friday, October 9, 2009

अपनों से यार जी लगता नही आजकल

दिल में छल कपट चेहरे पे ताजगी तो है

इश्क न सही मेरे वास्ते नाराजगी तो है

जिंदगी बेरंग बेनूर बदहबास है तो क्या

सपनों के फूल में गुलाब सी ताजगी तो है

आँखों को यकीं हो गया वो न मिलेंगें

दिल में किंतु अब भी जिन्दा बेखुदी तो है

अपनों से यार जी लगता नही आजकल

शुक्र है इस शहर में कुछ अजनबी तो है

sabko चांदनी मिले 'सोनू'ऐसा नसीब कहाँ

अपने आंगन में टिमटिमाते तारे की रौशनी तो है

Wednesday, October 7, 2009

सफ़ेद पोशाकें हैं पहने हुए मगर सादगी नही

आदमियों के भीर में कोई आदमी

तो है कोयल सी मीठी मगर दिलों में जरा सी बंदगी नहीगौर से देखिये जरा उनकी आंखों को हत्यारे हैं किंतु दिल में कोई बेचैनी नही वो हँस रहे हैं ठहाके लगा के जबकि मुंह कला किएन अपराधबोध, मन में शर्मिंदगी भी नही ये जो नौजवान है क्या सचमुच में जवान हें शिथिल है नारियां खून में भी गर्मी नहीमुश्किल है अब बहू-बेटियों का घर से निकलना तुम्ही बताओ 'सोनू' किस-किस के नजर में गन्दगी नही