Sunday, April 12, 2009

खून बहती थी मिलके जब पसीने में.


दर्द के दिन भी क्या बीते मजा आए न जीने में.
सुख के अमृत भी जैसे जहर लगे पिने में.
जिंदगी का मर्म समझता था तब मैं पल-पल
खून बहती थी मिलके जब पसीने में.
वो भी क्या दौर था किस्मत को चुनौती दिया करते थे
जोश-जज्बा रग-रग बनके दौरती थी सिने में.
न हाथ-पाँव दुखते थे ,न दिल -दिमाग थकता था
झूमते-गाते रहते थे साल के पूरे महीने में.


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aapka bahut-bahut dhanybad