Friday, April 10, 2009

महब्बत अब सिर्फ़ मजाक भर है.


रिश्ते-नाते और उसूल खाक भर है.
मोहब्बत अब सिर्फ़ मजाक भर है.
अरे,सबकी निगाहें गोल-गोल पे
संवेदना महज बकबास भर है.
धज्जियाँ उड़ने लगी हरेक शै की
असल में अच्छाई बात भर है.
तरस आए इश्क में चूर लोगों पे
मजा इसमे डाल-पात भर है.
समझाए
कोई नादान जवानी को
इश्क बस विरह-विलाप भर है
लुटने -
-लूटाने का दौड़ है अभी
सत्य
-ईमान-धर्म नकाब भर है.
वक़्त
अभी है जान ले दुनिया को,ये
नई
बोतल में पुरानी शराब भर है.
रचना की तिथि---०९/०४/०९
बेला
---- सुबह
की

2 comments:

  1. पहले तो मै आपका शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी! आप का ब्लोग मुझे बहुत अच्छा लगा और आपने बहुत ही सुन्दर लिखा है !

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  2. बहुत सुन्दर.........
    ’चलती राहों पे अपना प्यार लुटाने वालो
    इश्क की ओट में ईमान छला जाता है.’

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aapka bahut-bahut dhanybad