Sunday, April 5, 2009

फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.












मेरी हर खवाहिश जली तेरी जुदाई के आग में

फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.

जिस कलेजा में तू रही उसी को तूने काट दिया
जिस्म और जान को तूने नदी किनारे सी बाँट दिया
दाग ही दाग मिला दिल में हसीना तेरे हुश्न बेदाग़ में.
फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.

जख्म जो दिया तूने अभी तक ताज़ा नासूर है
तेरी बेबफाई का चर्चा गली शहर में मशहूर है
डंसी तो पता चला इतना जहर नहीं किसी बिशैला नाग में
फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.

तेरे हिस्से में हरेक दिन होली हरेक रात दिवाली है
अपने हिस्से में बर्बाद जवानी और शराब की प्याली है
हाथ लगा तो बस अँधेरा तेरी मोहब्बत के चिराग में.
फुल तो फुल कांटे भी मिली हरजाई तेरे बाग़ में.

रचना की तिथि---02/04/09
time=== 11to12pm NIGHT
din-- गुरुवार

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aapka bahut-bahut dhanybad