Wednesday, October 16, 2019

आज फिर से वो सजी है दुल्हन सलीका।

मेहंदी रची है हांथों में।
पायल बंधी हैं पाँवों में।
काजल लगी है आंखों में।
गजरा सजी है बालों में।
माथे पे कर ली है कुमकुम का टीका।
आज फिर से वो सजी है दुल्हन सलीका।

लाल लाल रेशमी ये घाणी चुनर है,
जो कंचन काया पे लहराए।
खन खन करती ये चूड़ियों की हुनर है,
जो मोह माया में उलझाए।
व्यर्थ चाँद की तारीफ ना कर पगले,
आज लगे मुझको, इसके आगे सब फीका।
क्योंकि आज फिर से वो सजी है दुल्हन सलीका।

 पीहू पीहू की तान लिए।
अधरों पे  मुस्कान लिए।
प्रेम आँचल में संजोयी है,
खुशियों की गुलिस्तान लिए।
आज अति भाये मुझको,
लगे कामिनी स्वरूपा।
क्योंकि आज फिर से वो सजी है दुल्हन सलीका।

न्योछावर तुझीपे ये वर्षों की कमाई दौलत,
की मेरी अंगूठी का नगीना है तू।
सब हार के भी तुझे जीतू,
की मेरी जिंदगी का वीणा है तू।
आज प्रतीत होते की तुझे पहली दफ़ा देखा।
क्योंकि आज फिर से वो सजी है दुल्हन सलीका।
तिथि:17.10.19
समय:2:55-3:58
लेखक: सुनील कुमार सोनू

No comments:

Post a Comment

aapka bahut-bahut dhanybad