Friday, March 6, 2009

बसंत आ गया

फ़िर ऋतुराज बसंत गया.
अन्दर-बाहर चहुँ और आनंद छा गया.

पीली-पीली सरसों झूम रही है हवाओं के संग.
नीली-नीली चिडियाँ घूम रही है फिजाओं के संग.

फूल-कलियाँ भँवरे को देखो क्या उमंग क्या तरंग है.
मदहोशी है बेहोशी है चाहे जिस इशारे को देखो,
.......................आहा..पुलकित सारे अंग-अंग है.

हरे-भरे है बाग-बगीचे
मस्ती-मस्ती करे डाली-डाली.
मन में प्रेम रस घोले
जब गीत गए कोयल काली-काली.

धरती ने भी ओढ़ ली लाल चुनरिया
अंबर को रिझाने को.
और आसमान बेताब है
नीली आँखों से
धरती को बहकाने को.

हर जुबां, हर अधर कहे.
खुशियों के स्वामी
कामना है की
तू सालो-साल रहे.

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aapka bahut-bahut dhanybad