दर्द के दिन भी क्या बीते मजा आए न जीने में. सुख के अमृत भी जैसे जहर लगे पिने में. जिंदगी का मर्म समझता था तब मैं पल-पल खून बहती थी मिलके जब पसीने में. वो भी क्या दौर था किस्मत को चुनौती दिया करते थे जोश-जज्बा रग-रग बनके दौरती थी सिने में. न हाथ-पाँव दुखते थे ,न दिल -दिमाग थकता था झूमते-गाते रहते थे साल के पूरे महीने में.
रिश्ते-नातेऔरउसूलखाकभरहै. मोहब्बत अबसिर्फ़मजाकभरहै. अरे,सबकीनिगाहेंगोल-गोलपे संवेदनामहजबकबासभरहै. धज्जियाँउड़ने लगीहरेकशै की असल में अच्छाईबातभरहै. तरसआएइश्कमेंचूरलोगोंपे मजाइसमेडाल-पातभरहै. समझाएकोईनादानजवानीको इश्कबसविरह-विलाप भर है लुटने --लूटाने का दौड़ है अभी सत्य-ईमान-धर्मनकाबभरहै. वक़्तअभीहैजानलेदुनियाको,ये नईबोतल मेंपुरानीशराबभरहै. रचनाकीतिथि---०९/०४/०९ बेला---- सुबहकी
मेरी हर खवाहिश जली तेरी जुदाई के आग में फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.
जिस कलेजा में तू रही उसी को तूने काट दिया जिस्म और जान को तूने नदी किनारे सी बाँट दिया दाग ही दाग मिला दिल में हसीना तेरे हुश्न बेदाग़ में. फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.
जख्म जो दिया तूने अभी तक ताज़ा नासूर है तेरी बेबफाई का चर्चा गली शहर में मशहूर है डंसी तो पता चला इतना जहर नहीं किसी बिशैला नाग में फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.
तेरे हिस्से में हरेक दिन होली हरेक रात दिवाली है अपने हिस्से में बर्बाद जवानी और शराब की प्याली है हाथ लगा तो बस अँधेरा तेरी मोहब्बत के चिराग में. फुल तो फुल कांटे भी मिली हरजाई तेरे बाग़ में.
रचना की तिथि---02/04/09 time=== 11to12pm NIGHT din-- गुरुवार
Friday, April 3, 2009
मेरी हर खवाहिश जली तेरी जुदाई के आग में फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.
जिस कलेजा में तू रही उसी को तूने काट दिया जिस्म और जान को तूने नदी किनारे सी बाँट दिया दाग ही दाग मिला दिल में हसीना तेरे हुश्न बेदाग़ में. फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.
जख्म जो दिया तूने अभी तक ताज़ा नासूर है तेरी बेबफाई का चर्चा गली शहर में मशहूर है डंसी तो पता चला इतना जहर नहीं किसी बिशैला नाग में फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.
तेरे हिस्से में हरेक दिन होली हरेक रात दिवाली है अपने हिस्से में बर्बाद जवानी और शराब की प्याली है हाथ लगा तो बस अँधेरा तेरी मोहब्बत के चिराग में. फुल तो फुल कांटे भी मिली हरजाई तेरे बाग़ में.
रचना की तिथि---02/04/09 time=== 11to12pm NIGHT din-- गुरुवार