बदल गया सबकुछ मगर प्यार का रंग अभी तक चोखा है सुख जाए भले ही नदियाँ-सागर आंखों पे हमें पूरा भरोसा है .
चुरा के दिल किसी का
क्यों अपने पास रखते हो.
शीशे की तरह टूट जानेवाले
क्यों एहसास रखते हो. अजी बुल-बुला सी होती है इश्क-विश्क की बातें, क्यों कोरी बातों पे विश्वास रखते हो.
वो जिसे चाहा छन भर में उसे भुला दियाएक हमही थे जो उसे भुलाने में,
एक युग लगा दिया

औरत ख़ुद नही जानती औरत क्या चीज है, वो तो हिरन की तरह मुर्ख है,
जो कस्तूरी की महक में पागल होके
वन-वन भटकती है.
जबकि उसे नही मालूम
कस्तूरी उसी का है वो भी उसके अन्दर. और
जो पहचान लेती है अपने छिपे इस कस्तूरी को
वो औरत मर्द बन जाती है।
तब नाम-काम-धाम सबकुछ हासिल कर लेती है. जिसे पाने की हसरत हर किसी को है चाहे हो स्त्री हो या पुरूष.
दर्द के दिन भी क्या बीते मजा आए न जीने में.
सुख के अमृत भी जैसे जहर लगे पिने में.
जिंदगी का मर्म समझता था तब मैं पल-पल खून बहती थी मिलके जब पसीने में.
वो भी क्या दौर था किस्मत को चुनौती दिया करते थे जोश-जज्बा रग-रग बनके दौरती थी सिने में.
न हाथ-पाँव दुखते थे ,न दिल -दिमाग थकता था झूमते-गाते रहते थे साल के पूरे महीने में.
.प्यार जिसे हुआ उसे तो अमर होना ही है,क्योंकि महबूब की यांदे मरने की इजाज़त नही देती।इश्क की दुनिया बड़ी अजीब है.
कोई इसमे राजा तो कोई गरीब है.
फसलों का क्या मतलब नगरों से,
दिल ने कहा दूर तो दूर है वरना
दिलबर तो शून्य के करीब है.
रिश्ते-नाते और उसूल खाक भर है.
मोहब्बत अब सिर्फ़ मजाक भर है.
अरे,सबकी निगाहें गोल-गोल पे
संवेदना महज बकबास भर है.
धज्जियाँ उड़ने लगी हरेक शै की
असल में अच्छाई बात भर है.
तरस आए इश्क में चूर लोगों पे
मजा इसमे डाल-पात भर है.
समझाए कोई नादान जवानी को
इश्क बस विरह-विलाप भर है
लुटने --लूटाने का दौड़ है अभी
सत्य-ईमान-धर्म नकाब भर है.
वक़्त अभी है जान ले दुनिया को,ये
नई बोतल में पुरानी शराब भर है.
रचना की तिथि---०९/०४/०९
बेला---- सुबह की
रिश्ते-नाते और उसूल खाक भर है. महब्बत अब सिर्फ़ मजाक भर है. अरे,सबकी निगाहें गोल-गोल पे संवेदना महज बकबास भर है. धज्जियाँ भर लगी हरेक शै कीविलाप भर अच्छाई विलाप बात भर है. तरस आए इश्क में चूर लोगों पे मजा इसमे डाल-पात भर है.
समझाए कोई नादान जवानी
इश्क बस विरह-विलाप भर है
lutane-लुटाने दौड़
सत्य-अभी-धर्म नकाब भर है.
वक़्त अभी है जान ले दुनिया को,ये
नई बोतल में पुरानी शराब भर है. रचना की तिथि---०९/०४/०९
बेला---- सुबह की
नशा तो होती है दिलकश जवानी में। नैनों की झील में औ' होठों की दो बूंद पानी में।
क्यों चेहरे पे लिए नकाब जीते हो।
तुम झूठ-मूठ के शराब पीते हो ।

मेरी हर खवाहिश जली तेरी जुदाई के आग में
फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.
जिस कलेजा में तू रही उसी को तूने काट दिया
जिस्म और जान को तूने नदी किनारे सी बाँट दिया
दाग ही दाग मिला दिल में हसीना तेरे हुश्न बेदाग़ में.
फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.
जख्म जो दिया तूने अभी तक ताज़ा नासूर है
तेरी बेबफाई का चर्चा गली शहर में मशहूर है
डंसी तो पता चला इतना जहर नहीं किसी बिशैला नाग में
फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.
तेरे हिस्से में हरेक दिन होली हरेक रात दिवाली है
अपने हिस्से में बर्बाद जवानी और शराब की प्याली है
हाथ लगा तो बस अँधेरा तेरी मोहब्बत के चिराग में.
फुल तो फुल कांटे भी मिली हरजाई तेरे बाग़ में.
रचना की तिथि---02/04/09
time=== 11to12pm NIGHT
din-- गुरुवार
मेरी हर खवाहिश जली तेरी जुदाई के आग में
फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.
जिस कलेजा में तू रही उसी को तूने काट दिया
जिस्म और जान को तूने नदी किनारे सी बाँट दिया
दाग ही दाग मिला दिल में हसीना तेरे हुश्न बेदाग़ में.
फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.
जख्म जो दिया तूने अभी तक ताज़ा नासूर है
तेरी बेबफाई का चर्चा गली शहर में मशहूर है
डंसी तो पता चला इतना जहर नहीं किसी बिशैला नाग में
फूल तो फूल कांटे भी न मिली हरजाई तेरे बाग़ में.
तेरे हिस्से में हरेक दिन होली हरेक रात दिवाली है
अपने हिस्से में बर्बाद जवानी और शराब की प्याली है
हाथ लगा तो बस अँधेरा तेरी मोहब्बत के चिराग में.
फुल तो फुल कांटे भी मिली हरजाई तेरे बाग़ में.
रचना की तिथि---02/04/09
time=== 11to12pm NIGHT
din-- गुरुवार
कर ले निश्चयजीवन के पथ पेकदम बढ़ते रहोगे।
कर ले निश्चय