क्या सुनाऊं मोहब्बत की दास्तान यारों.
मिट चुकी है चाहत में अरमान यारों.
राख के सिवा और कुछ न मिला
लुटा चुका हूँ इसमे अपना घर-मकान यारों.
न कोई फ़रिश्ता आया मुझे बचाने को
दुश्मनों ने कर दी लहू-लुहान यारों.
क्या अपने क्या पराये इस जहाँ के
छीना सबने चहरे की मुस्कान यारों.
कहाँ जाऊं क्या करूं जरा कोई बताये
महफ़िल भी लगे सुनसान यारों.
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aapka bahut-bahut dhanybad