Wednesday, January 21, 2009

तुने छीनी मेरी मुस्कान

क्या खूब किया एहसान
तुने छीनी मेरी मुस्कान

विश्वास का घरौंदा टूट गया
ये दिल अब ख़ुद से रूठ गया
जाने क्या होगा आगे
पतंग से डोरी छूट गया
पास आओ तुम्हे दिखाऊं
हो गया जिगर लहू लुहान
क्या खूब किया एहसान
तुने छीनी मेरी मुस्कान

कौन सी खुशी जो मै दे सका
कौन सा गम जो तेरा हर सका
जानना तो जरुर चाहूँगा आख़िर
क्यों तुने मुझे अंक भर सका
जीने नही देती तेरी यादें तेरी वादें
अधर में अटकी है प्राण
क्या खूब किया एहसान
तुने छीनी मेरी मुस्कान

खैर छोरो जो हुआ सो हुआ,अब
स्वीकार करो दिल दे रहा दुआ
दामन तेरे खिले फूलों सा
जीवन तेरे चहके बुलबुलों सा
आखिरी मेरा भेंट
आखिरी मेरा शब्द
तेरा भला करे भगवान
क्या खूब किया एहसान
तुने छीनी मेरी मुस्कान

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aapka bahut-bahut dhanybad