Tuesday, January 20, 2009

चार दिन तुमसे जो बात न हुई

चार दिन तुमसे जो बात न हुई

सच कहूँ आँखों के लिए रात हुई

क्षण भर सोया हूँ कुछ याद नहीं

सपनों में भी तुमसे मुलाकात न हुई

शायद हम-तुम बने है एक-दूजे के लिए

कभी औरों के लिए नयन प्रपात न हुई

चाँद-चकोर भी न भाया आँखों को

जिस रात तू मेरे साथ न हुई

सोच के डर जाता हूँ जिंदगी के बारे में

जब मेरे हाथों में तेरे हाथ न हुई

कोई शक नहीं तू सिर्फ मुझे चाहती है

किन्तु पहले कभी ऐसी हालत न हुई

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aapka bahut-bahut dhanybad