चार दिन तुमसे जो बात न हुई
सच कहूँ आँखों के लिए रात न हुई
क्षण भर सोया हूँ कुछ याद नहीं
सपनों में भी तुमसे मुलाकात न हुई
शायद हम-तुम बने है एक-दूजे के लिए
कभी औरों के लिए नयन प्रपात न हुई
चाँद-चकोर भी न भाया आँखों को
जिस रात तू मेरे साथ न हुई
सोच के डर जाता हूँ जिंदगी के बारे में
जब मेरे हाथों में तेरे हाथ न हुई
कोई शक नहीं तू सिर्फ मुझे चाहती है
किन्तु पहले कभी ऐसी हालत न हुई
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aapka bahut-bahut dhanybad