Saturday, February 1, 2020

सोलहवीं बसंत का ये पहला ख़ुमार था।

सोलहवीं बसंत का ये पहला ख़ुमार था।
होंठों पे शरारत और आँखों मे प्यार था।
दुपट्टा सीने पे ठहरता ही नही उफ़्फ़,
ना जाने कौन सा वो पछुआ ब्यार था।

अगन थी साँसों में जैसे कुम्भार की भथिनी हो,
जलन थी बाँहों में जैसे बर्फ की फ़िसलनी हो,
प्यास बुझी नही अधरों की जबकि चुम्बन भरमार था।
सोलहवीं बसंत का ये पहला ख़ुमार था।
होंठों पे शरारत और आँखों मे प्यार था।
दुपट्टा सीने पे ठहरता ही नही उफ़्फ़,
ना जाने कौन सा वो पछुआ ब्यार था।

ऐसी छुअन तो पहले न कभी हुआ था,
ऐसी सिहरन तो पहले न कभी हुआ था,
कामदेव की तीर जैसे कलेजे के आर-पार था।
सोलहवीं बसंत का ये पहला ख़ुमार था।
होंठों पे शरारत और आँखों मे प्यार था।
दुपट्टा सीने पे ठहरता ही नही उफ़्फ़,
ना जाने कौन सा वो पछुआ ब्यार था।

सायं सायं काँपते सर्दी की गज़ब आहट था,
शून्य की हाँफते ताप में भयंकर गरमाहट था,
खामोश रात में  कामिनी की अनकही हुंकार था।
सोलहवीं बसंत का ये पहला ख़ुमार था।
होंठों पे शरारत और आँखों मे प्यार था।
दुपट्टा सीने पे ठहरता ही नही उफ़्फ़,
ना जाने कौन सा वो पछुआ ब्यार था।

वो दौड़ गुजर गया, वो शोर गुजर गया,
जो लौट के न आया वो भोर गुजर गया,
वो लम्हा में इक जिंदगी जो गुजरा वो बेशुमार था।
सोलहवीं बसंत का ये पहला ख़ुमार था।
होंठों पे शरारत और आँखों मे प्यार था।
दुपट्टा सीने पे ठहरता ही नही उफ़्फ़,
ना जाने कौन सा वो पछुआ ब्यार था।
रचनाकार:सुनील कुमार'सोनू'
तिथि:01/02/2020
समय:रात्रि:09:45-10:15

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