Monday, July 13, 2009

और वो जगी नही जिसके लिए जगे रात भर

किसी की याद में हम जगे रात भर
और वो जगी नही जिसके लिए जगे रात भर
दिल की बेचैनी भला कहते किससे
चैन
से वो सोयी रही रात भर
यादों को यूँ जाने देता कैसे हम
इसलिए गीत लिखते रहे रात भर
मेरी नींद चुरा के वो चैन कैसे पाई
चोरों को क्या चैन मिलता है रात भर
कसक जो जागी तन्हा रातों में
आराम
तभी मिले जब होंगी बातें रात भर
तेरे कितने रूप देखें बताना मुश्किल है
आंखों
में हजारों मंजर दिखा रात भर
तड़प
किसी की कोई समझेगा क्या
जानेगा
वही जो तडपे कभी रात भर
किसी की याद में हम जगे रात भर
और वो जगी नही जिसके लिए जगे रात भर

2 comments:

  1. Sabhi rachnayen sundar hain..sabse badee cheez, bhasha,saral seedhee hai...

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aapka bahut-bahut dhanybad