किसी की याद में हम जगे रात भर
और वो जगी नही जिसके लिए जगे रात भर
दिल की बेचैनी भला कहते किससे
चैन से वो सोयी रही रात भर
यादों को यूँ जाने देता कैसे हम
इसलिए गीत लिखते रहे रात भर
मेरी नींद चुरा के वो चैन कैसे पाई
चोरों को क्या चैन मिलता है रात भर
कसक जो जागी तन्हा रातों में
आराम तभी मिले जब होंगी बातें रात भर
तेरे कितने रूप देखें बताना मुश्किल है
आंखों में हजारों मंजर दिखा रात भर
तड़प किसी की कोई समझेगा क्या
जानेगा वही जो तडपे कभी रात भर
किसी की याद में हम जगे रात भर
और वो जगी नही जिसके लिए जगे रात भर
बहुत अच्छी कविता है
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श्री युक्तेश्वर गिरि के चार युग
Sabhi rachnayen sundar hain..sabse badee cheez, bhasha,saral seedhee hai...
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