ओकर आँखियाँ जे कमल लागेला।
हम जे लिखनी उहे ग़ज़ल लागेला।
भौरा चिपकले रही काल्हु रातें में,
जेहे से तितली जादे चंचल लागेला।
छू के देखनी हम अजु ओकरा के,
नरम मोलायम जैसे मलमल लागेला।
ओकर ओझरल केशिया संवारत रही,
खबर नइखे कब सोम मंगल भागेला।
वोही रे जगहिया पे भटक गईनी हम तो,
उनखर याद बहुते घना जंगल लागेला।
मस्त मीठी हवे मलदहिया आम नियन,
ओकरे प्रीतिया से हमर जिन्गी हलचल लागेला।
©सुनील कुमार सोनू
लखीसराय, बिहार
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aapka bahut-bahut dhanybad