हाय!रोटी सूंघ के जिंदा हूँ मैं ।
हाँ! यही सोच के शर्मिंदा हूँ मैं।
कुकुर खाये मांस मछरी,
बिल्ली पिये दूध मलाई।
तोता खाये हरियर मिरची,
घोड़ा खाये चना दलाई।
निर्लज क्रूर नियति के मारे,
भूखे पेट चुनिंदा हूँ मैं।
कोई आलीशान महल में सोवे।
कोई माई के फटल अचरा में रोवे।
हड्डी देह में नही तनिको खून पानी,
कोई चिपक के दुधमुंहा चुचुक टटोवे।
देख ले देश जगत के रत्नों,
चलता फिरता मुर्दा हूँ मैं।
सोने की चिड़िया कह ले,
अरे सौ दंभ और तू भर ले।
मंदिर मस्जिद गिरजाघर में,
ढोंग पाखंड और तू कर ले।
मेरे मिट्टी छीन के फूल उगाए,
और कहे धूल गर्दा हूँ मैं।
हाय लगेगी हम गरीबों की,
कब तक कोशूं नसीबों की।
वोट बैंक की तुष्टिकरण में,
जीत न होती हम रक़ीबों की।
थूक दिया पान समझ के,
क्या कत्था सुपारी जर्दा हूँ मैं।
स्वरचित एवं मौलिक रचना
©सुनील कुमार सोनू
17।04।2020
हाँ! यही सोच के शर्मिंदा हूँ मैं।
कुकुर खाये मांस मछरी,
बिल्ली पिये दूध मलाई।
तोता खाये हरियर मिरची,
घोड़ा खाये चना दलाई।
निर्लज क्रूर नियति के मारे,
भूखे पेट चुनिंदा हूँ मैं।
कोई आलीशान महल में सोवे।
कोई माई के फटल अचरा में रोवे।
हड्डी देह में नही तनिको खून पानी,
कोई चिपक के दुधमुंहा चुचुक टटोवे।
देख ले देश जगत के रत्नों,
चलता फिरता मुर्दा हूँ मैं।
सोने की चिड़िया कह ले,
अरे सौ दंभ और तू भर ले।
मंदिर मस्जिद गिरजाघर में,
ढोंग पाखंड और तू कर ले।
मेरे मिट्टी छीन के फूल उगाए,
और कहे धूल गर्दा हूँ मैं।
हाय लगेगी हम गरीबों की,
कब तक कोशूं नसीबों की।
वोट बैंक की तुष्टिकरण में,
जीत न होती हम रक़ीबों की।
थूक दिया पान समझ के,
क्या कत्था सुपारी जर्दा हूँ मैं।
स्वरचित एवं मौलिक रचना
©सुनील कुमार सोनू
17।04।2020
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aapka bahut-bahut dhanybad