मेरा इश्क़ ऐसे रूठा है।
जैसे आख़िरी सांस छूटा है।
बसंत की असर नही उसपे,
जैसे पेड़ आम का ठुठा है।
चकनाचूर है अरमान के सीसे,
उफ़्फ़ बड़ी ऊँचाई से टूटा है।
नही आया समझ अब तक,
मेरा हुस्न ख़रा या खोटा है।
बिरह के ग़म कितने बड़े बड़े
सहने को दिल बहुत छोटा है।
भोर क्यूँ सोया है चादर ताने
रात डरावनी है घना सन्नाटा है।
दूर है इतना कोई किसलिए,
नफ़रत क्यूँ इतना मोटा है।
रचनाकार:सुनील कुमार सोनू
तिथि:07।03।2020
समय:10-10:30PM
जैसे आख़िरी सांस छूटा है।
बसंत की असर नही उसपे,
जैसे पेड़ आम का ठुठा है।
चकनाचूर है अरमान के सीसे,
उफ़्फ़ बड़ी ऊँचाई से टूटा है।
नही आया समझ अब तक,
मेरा हुस्न ख़रा या खोटा है।
बिरह के ग़म कितने बड़े बड़े
सहने को दिल बहुत छोटा है।
भोर क्यूँ सोया है चादर ताने
रात डरावनी है घना सन्नाटा है।
दूर है इतना कोई किसलिए,
नफ़रत क्यूँ इतना मोटा है।
रचनाकार:सुनील कुमार सोनू
तिथि:07।03।2020
समय:10-10:30PM
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aapka bahut-bahut dhanybad