Monday, May 11, 2020

ऐसा लगा कि मिल गयी मुझको रेखा है

घूँघट हटा के जब मैंने उसको देखा है।
ऐसा लगा कि मिल गयी मुझको रेखा है।
नयन कजरारे मिले ,हुस्न अंगारे मिले,
ऐसा लगा कि हूर परी की रूपरेखा है।

माथे की बिंदिया जैसे जगमग ध्रुवतारा हो।
जुल्फों की बदलियां जैसे रात आवारा हो।
चाँद भी उतर आया मेरे सनम के दर्शन को,
स्वर्ग की रश्मियां जैसे भूमि पे उतारा हो।
पूर्व जन्म का फल है या भोलेनाथ की कृपा,
जैसा मन में सोचा वैसा ही वो झरोखा है।
घूँघट हटा के जब मैंने उसको देखा है।
ऐसा लगा कि मिल गयी मुझको रेखा है।

दूधिया रंग बदन के और इनसे चांदनी छूटे।
कामिनी के आगोश में आके कई लावा फूटे।
तृप्ति ऐसा की फिर कुछ पाने की आस नही।
संतुष्टि ऐसा की इसके आगे कुछ झकास नही।
यौवन की मलिका सावन की सलीका है,
बसंत की रहनुमा कुदरत की वो लेखा है
घूँघट हटा के जब मैंने उसको देखा है।
ऐसा लगा कि मिल गयी मुझको रेखा है।
©सुनील कुमार सोनू
11।05।2020

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