Sunday, May 31, 2020

ई कुर्सी केकरो बपौती नईखे

हुनर राज करिहै लठैती नईखे।
ई  कुर्सी केकरो बपौती नईखे।1//

सियासी जंग बिया तो सम्हर के,
ओकरे साथ देई ई गछौती नईखे।2//

इश्क बानी आ पुरजोर बानी मगर,
हुस्न से मांगनी कबो फिरौती नईखे।3//

तोहर दिल चुरा लेई हक बा हमर,
एकरा चोरी कहेला डकैती नईखे।4//

उ भौजी अक्सर गीली भात खावेली,
सुनले बिया उनके घर मे कठौती नईखे।5//

पलायन एक बहुते जटिल समस्या बाटे,
सांसद कहेला ई कौनो चुनौती नईखे।6//

सुनील कुमार सोनू
लखीसराय, बिहार
30।05।2020

सावन भादो है सखी

बेरी बेरी आवेला धियानवा
कब अइहें मोर सजनवा
नयनवा सावन भादो हे।
सावन भादो हे सखी
सावन भादो हे।
उनका बिना कटे नही दिनमा
कब अइहें मोर सजनमा
नयनवा सावन भादो हे।

गऊंआ जवार में बियाहवा जब होवे।
नेहिया के मातल पलंगिया टिटोवे।
याद आवेला टूटल चूड़ी कंगनवा
कब अइहें मोर सजनवा
नयनमा सावन भादो हे।
सावन भादो है सखी
सावन भादो हे।

सरसों फुलाइल,महक गइले जूही।
अचरा के कोर से,सरक गइले दुही।
नहीं थमे उमड़ल यौवनवा (जोवनवा)
कब अइहें मोर सजनवा
नयनवा सावन भादो हे।
सावन भादो है साखी
सावन भादो हे।

कोयल पपीहरा के बोलियो न भावे।
रूप सिंगार के अठखेलियों न सुहावे।
सुना सुना लगे अंगनवा
कब अइहें मोर सजनवा
नयनवा सावन भादो हे।
सावन भादो हे सखी
सावन भादो हे।

संग नही छोटी ननदी, नही  छोटका देवरवा
केकरा से बात कही, केकरा पे झाड़ी तेवरवा
नही बाटे एको गो ललनवा
कब अइहें मोर सजनवा
नयनवा सावन भादो हे।
सावन भादो है सखी
सावन भादो हे।
:सुनील कुमार सोनू
06।05।2020
समय:रात्रि 8:30-9:05PM

Saturday, May 30, 2020

कुर्सी किसी की बपौती नही

हुनर राज करेगा लठैती नही।
कुर्सी किसी की बपौती नही।1//

सियासी जंग है तो संभल जा,
उसका साथ दूँ ये गछौती नही।2//

इश्क किया है बेइंतहा किया है,
हुस्न से मांगी कभी फ़िरौती नही।3//

मैं तेरा दिल चुरा लूँ हक है मेरा,
इसे चोरी तो समझो डकैती नही।4//

वो अक्सर गीली भात खाता है,
सुना है उसके घर मे कठौती नही।5//

पलायन एक बहुत बड़ी समस्या है,
तुम कहते हो ये कोई चुनौती नही।6//
सुनील कुमार सोनू
28।05

Monday, May 11, 2020

ऐसा लगा कि मिल गयी मुझको रेखा है

घूँघट हटा के जब मैंने उसको देखा है।
ऐसा लगा कि मिल गयी मुझको रेखा है।
नयन कजरारे मिले ,हुस्न अंगारे मिले,
ऐसा लगा कि हूर परी की रूपरेखा है।

माथे की बिंदिया जैसे जगमग ध्रुवतारा हो।
जुल्फों की बदलियां जैसे रात आवारा हो।
चाँद भी उतर आया मेरे सनम के दर्शन को,
स्वर्ग की रश्मियां जैसे भूमि पे उतारा हो।
पूर्व जन्म का फल है या भोलेनाथ की कृपा,
जैसा मन में सोचा वैसा ही वो झरोखा है।
घूँघट हटा के जब मैंने उसको देखा है।
ऐसा लगा कि मिल गयी मुझको रेखा है।

दूधिया रंग बदन के और इनसे चांदनी छूटे।
कामिनी के आगोश में आके कई लावा फूटे।
तृप्ति ऐसा की फिर कुछ पाने की आस नही।
संतुष्टि ऐसा की इसके आगे कुछ झकास नही।
यौवन की मलिका सावन की सलीका है,
बसंत की रहनुमा कुदरत की वो लेखा है
घूँघट हटा के जब मैंने उसको देखा है।
ऐसा लगा कि मिल गयी मुझको रेखा है।
©सुनील कुमार सोनू
11।05।2020

Sunday, May 10, 2020

माँ तो माँ होती है

#माँ_तो_माँ_होती_है।
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माँ    तो    माँ   होती  है।
तेरे जैसा कोई कहाँ होती है।
विष्णु भी तेरे कोख से जन्मे,
देवकी यशोदा जहाँ होती है।

सृष्टि का लालन पालन करने वाले,
तेरे गोद मे पलने को तरसे।
चाँद सुरुज की महिमा गाने वाले,
तेरी लोड़ी सुनने को तरसे।
वात्सल्य प्रेम के मोह न छूटे,
कौशल्या कैकयी जहाँ होती है।

नेह स्नेह की परिभाषा तुमसे,
सारी जगत की आशा तुमसे,
तुम हो तो ये सकल  संसार है।
तेरे बिना कल्पना भी बेकार है।
तेरे आँचल का दूध पीये बिना,
कहाँ कोई संतति जवां होती है।।

मृत्यु भी फुट फुट के  रोता है,
माँ को जब काल हर लेता है।
याद करके वो अपना बचपन,
माँ की श्रीचरण धर लेता है।
माँ ही जाने माँ के मर्म,
थाह किसे ये गहरी कुआँ होती है।
©सुनील कुमार सोनू"दिव्य"
#लखीसराय, #बिहार
10/05/2020
#सुनील_कुमार_सोनू